हर रोज़ एक सबक ,एक नई परीक्षा, सिखाता है मातृत्व।

हर रोज़ एक सबक ,एक नई परीक्षा, सिखाता है मातृत्व।

जब मैंं कालेज मे थी ऐसा लगता था, कि हर समय दबाव मे हूँ।कभी मिडटर्म कभी फाईनल परीक्षा तो कभी यूनिट टेस्ट।हर समय परीक्षा ,अच्छे नंबर लाने का दबाव,फर्स्टआने का दबाव।तब सोचा करती थी, बस पढ़ाई खत्म हो जाए जिंदगी जरूर आसान हो जाएगी।पढाई खत्म होने के बाद तो कुछ समझ नहीं आया।जब बड़ी बेटी के जन्म के बाद ससुराल आई और छोटे से बच्चे के साथ घर की जिम्मेदारियां आयीं तब समझ आया, ये दबाव क्या होता है। फिर समझ आया, सोते हुये बच्चे को छोड़कर जल्दी-जल्दी घर के सारे काम निपटाने की हड़बड़ी में भी गलती से भी कोई बरतन आवाज ना करे इसका ध्यान कैसे रखा जाता है।

गुड़िया सो रही है तो काल बेल की आवाज़ से जाग ना जाए ,इसके लिये दरवाजे पर बराबर नज़र रखना।बच्चे की नींद पूरी होने के पहले जब भी काम खत्म हो जाए लगता है कि पास हो गए।किसी काम मे व्यस्त होने की वजह से बच्ची पर ध्यान ना दे पाये तो मन मसोस उठता है।कितना भी खुद को स्संझा लें, कि ज्यादा दबाव मे ना रहे पर लालच नहीं जाता अपने बच्चे को सर्वश्रेष्ठ देने का।एक बार कोई चीज़ बर्बाद हो जाए, इतनी तकलीफ़ नहीं होती।किसी काम को लेकर घर का कोई नाराज़ हो जाए, इतना बुरा नहीं लगता।

जितना बच्चे को परेशान देखकर लगता है,या उसकी कोई बुरी आदत से लगता है।मां होने के बाद ही हममें सहन शक्ति आती है।संयम की और आखिर क्षण तक कोशिश करने की।मेरी एक सहेली जो छः महीने पहले ही एक प्यारी सी बिटिया की मां बनी है।पहले से काफी कमज़ोर दिखने लगी है।काफी बुझी बुझी रहती है और आजकल तो उन्हें गुस्सा भी ज्यादा आने लगा है।

मैं उनसे जब भी मिलती हूँ, तनाव रहित रहने और पौष्टिक खाना खाने की सलाह देती हूँ।उन्होंने बताया वो घर और औफिस के बीच सामंजस्य नहीं बिठा पा रहींं हैं। उनके हिसाब से पति और परिवार वाले भी सहयोग नहीं कर रहें है और बच्चे के साथ वो कोई भी समझौता कर नहीं पा रही हैं।

इसकी वजह से वो परेशानी महसूस करतीं हैं।असलियत में वे समझौता किसी और के साथ नहीं सिर्फ अपने आप के साथ कर रहीं हैं।हम सभी ऐसे ही कहते हैं, बच्चे से पहले का सारा समय घर के काम और लोगों को देते हैं, फिर हम उसमे कटौती नहीं कर पाते।फिर समय के साथ हमारी क्षमता बढ़ जाती है।क्या करना है क्या छोड़ना है ,हम सीख जाते हैं।ये राह पति और परिवार के अपेक्षित सहयोग से आसान हो जाता है।अन्यथा मातृत्व से हम काफी कुछ सीख जाते हैं।

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