हर बच्चा खास होता हैं, कृपया ! उनकी तुलना ना करें।
आज हर जगह हर किसी से किसी की तुलना की जा रही है। उसे देखो वो ऐसा है, तुम उसके जैसा क्यों नही करते, वो देखो कितना अदब से बोलता है या रहता हैं, तुम भी कुछ सीखो। जब किसी की तुलना की जाती है उस पर क्या बीतती है इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। कभी-कभी हालात दूसरों के साथ तुलना करने की वजह से इतना बिगड़ जाते हैं कि व्यक्ति अवसादग्रस्त हो जाता है। सब का अलग एक स्वभाव, तरीका और हुनर होता है हम क्यों नहीं जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करे, किसी और के जैसा बनने को ना कहे।
“अरे वाह ! मेरी गुड़िया आज तो परी लग रही हैं, बहुत सुंदर हैं मेरी गुड़िया तो ” कविता जी ने अपनी नातिन को गोद में लेते हुए कहा। वहीं पास खड़ी उनकी पोती मान्या सब चुपचाप देख-सुन रही थी। और फिर दौड़कर अपनी माँ के पास जाती हैं और पूछती हैं “मम्मी क्या मैं अच्छी नहीं लग रही”। उसकी माँ कहती हैं “किसने कहा?” मेरी लाडो तो बहुत सुंदर लग रही है।
“तो दादी सिर्फ डोली को सुंदर कहती हैं उसे इतना प्यार करती हैं मुझे क्यों नहीं.. मैं भी तो अच्छे से तैयार हुई हूँ और मेरे लिए कभी कुछ नहीं लाती सब डोली के लिए लाती है क्यों !” मान्या ने पूछा। इस सवाल का जवाब उसकी माँ के पास नहीं था।
“देखो तुम्हारी मासी के बेटे संजू के बारहवीं में कितने अच्छे अंक आए हैं कितना होशियार हैं वो”, और एक तुम हो ! इतने कम अंक, सारे दिन बस मस्ती करा लो”। अजय के पापा ने डांटते हुए कहा।
“भाभी की बेटी को देखो घर के सब काम करती हैं और कितना अच्छा खाना भी बनाती हैं”, और एक तुम हो किचन के नाम से ही भाग जाती हो, सीखो कुछ उससे”। सोनाली की मम्मी ने उस पर चिल्लाते हुए कहा।
“अपने पड़ोस में रहने वाली छवि को देखो कितनी टेलेन्ट है हर फील्ड का नॉलेज हैं, और सबमें ऐक्टिव है। कितने अच्छे से तैयार भी होती हैं,तुम्हारी ही उम्र की है। और तुम्हें देखो बस दिनभर फोन में लगी रहती हो।” डिम्पल की मम्मी ने डिम्पल को कहा।
अक्सर देखा जाता है माँ-बाप अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करते हैं कि “उसे देखो वो कितना होशियार हैं या वो देखो कितना समझदार संस्कारी हैं। सीखो कुछ बनो उनके जैसा”आदि। कहीं-कहीं तो एक ही परिवार के बच्चों की आपस में तुलना की जाती हैं कि “अपने भाई या बहन को देखो”। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उन बच्चों के बाल-मन पर क्या बीतती हैं जिन्हें दूसरों की तुलना में कम आंका जाता है? उन बच्चों में दूसरे बच्चों से कुछ सीखने की जगह मन में जलन ईर्ष्या भाव पैदा हो जाते हैं। आगे जाकर अपने ही भाई या बहन के साथ रहने की बजाय उनके विरोधी हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें कम आँका जाता हैं, उनकी खूबियां को दरकिनार किया जाता हैं। याद रखे हर बच्चा अलग होता हैं सब में अपना एक हुनर होता हैं। कोई पढ़ाई में अव्वल हैं तो कोई खेलकूद में, कोई हस्त कला में निपुण हैं तो कोई पाक कला में। किसी को भी कम ना आंके ना ही किसी से उनकी तुलना करें।
आज हर जगह तुलना ही है सिर्फ वो देखो कितना सुंदर और होशियार है, वो देखो उसके पास कितनी अच्छी गाड़ी है घर है। उसके पास देखो कितनी अच्छी नोकरी है आदि। कृपया अपने बच्चे के हुनर को देखे परखे और निखारे ना कि उन्हें ये कहे कि उससे सीख वो कितना अच्छा है। बल्कि उन्हें ये कहे कहे कि आपस में एक दूसरे के हुनर को बांटे कुछ नया सीखे और सिखाये। उन्हें अपना हुनर निखारने को कहे और आप भी उनकी मदद करे ना कि ताना मारे। इससे उनमें आत्मविश्वास भी आएगा और निखार भी आएगा और एक दूसरे के प्रति सम्मान भाव आएगा ना कि ईर्ष्या का। आपके विचारों का स्वागत है।
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