स्कूल जाते बच्चों के साथ हमारा व्यवहार, बिताएं उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय।
जब बच्चा घर पर होता है उसे सिर्फ वही मालूम होता है, जो हम बताते है वो वही जानते है ।हम हमेशा होते है उन्हें समझने के लिये, दुलारने के लिए, उनको प्रोजेक्ट करने के लिये।स्कूल मे वो पहली बार खुद को अपनी पहचान से जाने जाते है।कितने सारी बाते वो देखते तो पहले से है पर समझना वो स्कूल जाने के बाद ही शुरू करते है।जैसे टीवी के प्रोग्राम के बारे मे।खिलौनों की खुबियां।बातो के लहजो मे अचानक से अलग टोन आ जाता है।
वो तरह तरह के अभिनय वाले खेल।आपकी नकल उतारने वाली गुडिय़ा अब टीचर की नकल करने लगी है।और हा तरह तरह के खाने की फरमाइश ।पराठे के बाद पोहा अब इडली।मा के हाथ से खाने वाला लल्ला लंच बाक्स खुद खत्म कर लेता है।राजा बेटा, सिर्फ मम्मी ही नहीं टीचर की नजरो मे अच्छा बेटा बनने की कोशिश मे लगा रहता है।अपने दोस्तों के बीच बडो सा व्यवहार करता है ।लेकिन कहते है ना विकास अपने साथ कुछ अवांछित चीजे भी लाता है ।
हम उसे पूरी तरह रोक तो नहीं सकते ।हाँ मगर अपने बच्चों को उसके गलत प्रभाव से बचा सकते है।सबसे पहले उन्हें नरमियत के साथ अपनी बात पर टिकना सिखाये।अच्छी बुरे मे फर्क बचपन से सिखाए।स्कूल या बाहर किसी से अकेले मे ज्यादा लगाव दिखने या दिखाने से रोके।गुड टच और बैड टच का अंतर जरूर बताए।किसी का व्यवहार अगर उसे अच्छा महसूस नहीं कराता तो उसके भावनाओं को समझे।ये चीजें हमे तभी समझ आएगी जब हम उसे वक्त देंंगें।
आज के भागमभाग मे समय की कमी सभी की जीवनचर्या है।हमे ये भी समझना होगा,कि हमारे बच्चे ही हमारी सबसे बडी पूंजी है।जैसे हम उनके स्वास्थ्य, भोजन के साथ कोई टालमटोल नहीं कर सकते वैसे ही उन्हें अपने आसपास रखें, उन्हें देने वाले समय के साथ कोई अतिशयोक्ति ना करे।उन्हें समय और स्नेह बराबर रूप से दे।
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