सखी मनभावन सावन झूमकर आयो रे! (एक कविता)

सखी मनभावन सावन झूमकर आयो रे! (एक कविता)

जी हाँ पाठकों, फिर हाजिर हूँ एक कविता के साथ । जैसे कि अभी सावन का महीना चल रहा है तो मैंने इस कविता के माध्यम से सावन के अलग-अलग एहसासों को एक माला रूप में पिरोया है । आशा है कि आप सभी अवश्य ही पसंद करेंगे ।

मिट्टी की भीनी खुशबू संग खिले फूलों के उपवन,

सतरंगी मोर नाचते संग तितलियों व भौंरों की गुनगुन,
आसमान में कलरव करते पक्षियों संग पिहु की गुंजन,
मधुर राग मेघ मल्हार के आलाप बिखेरते हुए
सखी मनभावन सावन झूमकर आयो रे।

मतवाली फैनी के लच्छे संग पूङों की पक-बन,
भगवान शंकर की भक्ति संग गौरी का पूजन,
मेहंदी के पत्ते संग भांग की घोटन,
हरी-भरी बगिया में झूलन पर झूलते हुए
सखी मनभावन सावन झूमकर आयो रे।

वो ढोलक की थापों पर दादी का गायन,
ठुनकता ठुमकता हुआ अल्हड़-सा बचपन,
कमरे में छिपकर वह घुंघरू का नर्तन,
माँ के आंचल में छिपा चंचल चितवन,
श्रृंगार रस में डूबकर संवरते हुए
सखी मनभावन सावन झूमकर आयो रे।

वह फूलों के गहने वह हल्दी वह चंदन,
वह नाजुक से हाथों में छोटा सा दर्पण,
वह गुड़िया के मेले में जाने की बन-ठन,
यूं संजना संवरना शर्माकर इठलाते हुए
सखी मनभावन सावन झूमकर आयो रे।

वह अमवा की डाली पर रस्सी की उलझन,
वह झूले की मस्ती और सहेली संग अनबन,
वह दो पल की कट्टी और दोस्ती का बंधन,
हाथों में रचा मेहंदी सखियों संग गाते हुए
सखी मनभावन सावन झूमकर आयो रे।

माँ की चूल्हे की रोटी वह मिट्टी के बर्तन,
भले हाथ गंदे हों, दिल तो था उसका पावन,
बाबुल अठखेलियां करते हुए वह रोना छिपावन,
वह भाई का यूं चिढ़ाना आएगा तेरा रंगीला साजन,
लिवा ले जाएगा एक दिन बांधे डोर विवाह का बंधन,
बहुत याद आता है ऊँचे विचारों का सादा-सा जीवन,
फिर ढूंढ लाओ जाकर ऐसा मनभावन सावन
सखी मनभावन सावन झूमकर आयो रे।

धन्यवाद आपका !

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