शुरुआत एक नवीन पहल की (भाग-4)
क्रमश:………*********……भाग-3 से
इतने में अनुपमा को पता चल जाता है कि उसकी सखियॉं उससे मिलने आईं हैं, तो वह अपने कमरे से बाहर आती है और अपनी सखियों के गले से लिपटकर बहुत जोर से रोने लगती है, मानो जैसे बहुत दिनों बाद मन में समाया गुबार निकला हो। पति के निधन के बाद ठीक से रो भी नहीं पाई थी बेचारी, एक तो कंवल छोटा था और सास-ससुर ताने देते हुए अपने बेटे की मौत का दोषी अनुपमा को ही ठहराने लगे। उन्होंने ये तो सोचा ही नहीं कि दोनों के विवाह को ज्यादा दिन हुए भी नहीं थे! और तो और उन्होंने अपने जनमते बच्चे का मुहं तक नहीं देखा था।
अचानक देश की बॉर्डर पर हमला हो जाने के कारण उनको देशसेवा की खातिर आवश्यक रूप से जाना पड़ा! पर हॉं वे जाते-जाते छोटे भाई राजीव को जरूर गले लगाते हुए बोले कि अपनी भाभी की हमेशा ही सहायता करना। आखिर वे फौजी आदमी जो ठहरे, एक तो उनकी हमेशा ही जान जोखिम में ही रहती और किसी भी समय कुछ भी हो सकता है! यह उन्हें अच्छी तरह से पता था और माता-पिता किस तरह से पुरानी कुरितियों में जकड़े हुए हैं, यह भी निश्चितता के साथ पता था और वे इस परिवर्तनीय समाज में अपनी विचारधाराओं को बिल्कुल भी बदलने वाले नहीं हैं, यह उन्हें पूर्वविदित ही था।
नवविवाहित अनुपमा अपने फौजी पति के सपने को पूरा करने के उद्देश्य से विवाह के दो माह उपरांत ही गर्भवती हो गई क्योंकि पति का उज्जवल महत्वपूर्ण सपना था, जो उन्होंने परसौनी गॉंव में एक-दूसरे को पहली बार पसंद करने पर ही सोच रखा था कि! विवाहोपरांत पहली संतानोत्पत्ति चाहे बेटा हो या बेटी, उसे सुसंस्कृत रूप से प्रशिक्षित करते हुए देश की सेवा की खातिर फौज में ही भर्ती कराएंगे।
फिर भी जिंदगी के हर पायदान पर खट्टी-मीठी परिस्थितियों का सामना डटकर करने वाली अनुपमा अबोल रहकर ही अपनी ससुराल में झूठे समाज और सास-ससुर की रूसवाईयों तले इस परिवर्तनीय युग में भी दबी ही जा रही थी। एक विवाहोपरांत पति का सानिध्य पूर्ण रूप से न मिल पाना, पारिवारिक रिश्तों की गइराईयों को न जान पाना और अचानक ही पतिदेव का शहीद हो जाना! इन्हीं सब कठिनाईयों के बीच अनुपमा ने फूल जैसे पुत्र कंवल को जन्म दिया, तत्पश्चात मॉं, भाई और देवर राजीव का ही सहयोग रह गया अब उसकी वर्तमान जिंदगी में।
कंवल के जन्म लेने से ससुराल में धीरे-धीरे अनुपमा वर्तमान जिंदगी को स्वीकारते हुए ढलती जा रही थी और उसके पालन-पोषण के साथ ही नौकरी करने की ठानकर ही वह घर से बाहर निकली ताकि पतिदेव के साथ सोचे हुए सपने को साकार कर सके! वैसे भी घर में रहकर क्या उखाड़ना था उसे। उसने सोचा कि भले ही दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में अनुभव लेना पड़े पर जिंदगी में अब एक नई शुरूआत के लिए पहल तो करना ही पडेगी न? और इस मुहीम में देवर राजीव का नितांत सहयोग था, जैसे कंवल की देखरेख, अनुपमा को मानसिक और आर्थिक सहयोग के साथ ऑफीस छोड़ना और लाना! फिर भले ही सामाजिक रूप से वह योग्य हो या न हो, उसे तो अपने भाई को दिए वचन की लाज रखनी थी।
यह सब अनुपमा की मॉं और भाई विजय से विदित होने के पश्चात तो राजी और वत्सला के रोंगटे खड़े हो गए! साथ ही सोचने लगीं कि इतनी कठिनाईयों से गुजरने के बाद भी अनुपमा पूर्ण आत्मविश्वास और हौसले के साथ अपनी जिंदगानी को जी रही थी क्यों कि उसकी मॉं जो उसके हौसला अफजाई के लिए हरदम साथ थी। तभी उस दिन अनुपमा ऑफीस में किसी के भी बोलने की परवाह किए बिना ही अपने देवर के साथ घर को हो ली।
………. ।।।।।।।।। क्रमश: अंतिम भाग-5 की ओर ।।।।।।। …………..
Disclaimer: The views, opinions and positions (including content in any form) expressed within this post are those of the author alone. The accuracy, completeness and validity of any statements made within this article are not guaranteed. We accept no liability for any errors, omissions or representations. The responsibility for intellectual property rights of this content rests with the author and any liability with regards to infringement of intellectual property rights remains with him/her.