रोज करे ऐसा ऐसा गृहप्रवेश!!

रोज करे ऐसा ऐसा गृहप्रवेश!!

सुमित उच्च पद पर कार्यत है। सुंदर ,स्मार्ट केवल देखने में ही नहीं ,अपितु यह स्मार्टनेस उसके स्वभाव का हिस्सा भी है ।परंतु काम का बोझ कुछ ऐसा आन पड़ा है, उसके कंधों पर कि क्या कहा जाए? वह घर आते ही थका हुआ, उदास महसूस करते हैं। बच्चे उनके साथ वक्त बिताना चाहते हैं ।तो वह चिड़चिड़ा से जाते हैं। यह कहना है रचना का जो एक गृहणी व दो बच्चों की मां है ।

प्रांजल एक वर्किंग महिला है। वह पेशे से एक शिक्षिका है ।उनकी सुबह घर की जिम्मेदारियों को निभाने व स्कूल में हर स्तर पर अपने आप को बेहतर साबित करने की होड़ से होती है ।

परंतु दोपहर तक बच्चों के बीच रहकर जब वह अपने घर लौटती हैं ।तो उनकी वह कुछ पल अकेले रहने की इच्छा पूरी नहीं होती ।क्योंकि वहां से आने के पश्चात उन्हें वापस घरेलू जिम्मेदारियों से दो-चार होना आवश्यक होता है। और उनके बच्चे उनसे समय मांगते हैं अपने लिए तो वह बुरी तरह झुंझला उठती हैं। यह बात हुई बाहर जाकर जो लोग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं उनकी ।

परंतु जो घर के भीतर रहते हैं। उनका क्या? हम यहां बात कर रहे हैं। घरेलू महिलाओं की  जो घर में ना हो तो सारी व्यवस्था ही डगमगा जाती है। तनाव ,अवसाद और कार्य का भार तो उन घरेलू महिलाओं पर भी उतना ही होता है। परंतु वह फिर भी बाहर से आने वाले प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह उसका पति हो, बच्चे हो अथवा घर का कोई अन्य सदस्य सभी का अनिश्चित व्यवहार झेलती है। और उसका स्वयं का व्यवहार वह कौन झेलता है ।जी हां अनुचित व्यवहार से दो-चार घरेलू महिलाएं भी होती हैं ।जो घर के अंदर ही रहती है ।क्योंकि उनका कार्यस्थल तो वही घर की चारदीवारी ही होता है।उनका व्यवहार भी उनके बच्चे  ही अधिक झेलते है।

कार्यस्थल पर कार्य का भार सभी के कंधों पर होता है ।फिर वह कार्यस्थल घर की चारदीवारी के भीतर हो, अथवा बाहर ।परन्तु कार्यस्थल से निकल कर जब हम अपने घर में प्रवेश करें। तो हम उस भार को उसी कार्य स्थल पर छोड़ आए तो कितना अच्छा हो ।

हमारे कंधो पर जो यह भार लेकर हम जब गृह प्रवेश करते हैं ,तो उस भार का वहन हमारे साथ साथ हमारा जीवन साथी हमारे बच्चे सभी करते हैं। खासतौर से हमारे बच्चे करते हैं ।क्योंकि वही ऐसे निर्बल और असहाय प्राणी होते हैं। जो हमारे क्रोध, हमारे अवसाद को मजबूरी में झेलने की भरपूर क्षमता रखते हैं ।

उन नन्हे फूलों पर कृपया अपने कार्यस्थल की जिम्मेदारियों का भार जाने अनजाने ना डालें। उन्हें केवल आपसे आपका कुछ समय और निश्चल प्रेम चाहिए होता है।

तो छोड़ आइए जब गृह प्रवेश करें। अपने कार्य स्थल पर ही अपना कार्यभार ,अवसाद, घमंड, क्रोध ,नाराजगी अपने नकारात्मकता, अपनी व्यस्तता ।

साथ ले आए अपने शरारती मुस्कान, अपना निश्चल प्रेम से परिपूर्ण व्यवहार ,अपनी सहजता, अपने भीतर का हल्का पर ,अपने आप को भीतर से खाली करके आए आप ।ताकि अगले दिन के लिए दोबारा भर सके वह सबल ।जिससे अगले दिन गुजर जाए सहज रूप से ।और आपका सुंदर घरौंदा महकता रहे सदा सुख ,शांति और प्रसन्नता से ओतप्रोत होकर।

आपके विचारो का स्वागत हेै।

Disclaimer: The views, opinions and positions (including content in any form) expressed within this post are those of the author alone. The accuracy, completeness and validity of any statements made within this article are not guaranteed. We accept no liability for any errors, omissions or representations. The responsibility for intellectual property rights of this content rests with the author and any liability with regards to infringement of intellectual property rights remains with him/her.

Previous article «
Next article »