मेरी अपनी माँ से दूर, बनी मेरी अपनी दूसरी माँ…!!
सख्त राहों में भी आसान सफर लगता है, यह मेरी मां की दुआओं का असर लगता है !!
वाकई में कौन सोच सकता है कि हमारी आने वाली ज़िन्दगी हमें क्या दिन दिखाएगी, मगर हमारे संस्कार, हमें मिली हुई बचपन की शिक्षा ही हमें उससे उबरने की हिम्मत देती है। आज मैं आपको एक ऐसी बेटी की कहानी सुनाने जा रही हूँ जिसने अपनी सासू माँ में अपनी माँ की छवि को पाया। मैं एक बहुत बड़े संयुक्त परिवार की बेटी हूँ, हमें बचपन से ही बड़ो का आदर करना और रिश्तो की अहमियत को समझना सिखाया गया है। मैंने इंजीनियरिंग की, जॉब भी किया, जब मेरी शादी होने वाली थी तब मुझे सिर्फ चाय ही बनाना आता था। घर में इतनी भाभियाँ थी कि कभी काम करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।शादी हुई, नई जगह, नए लोग, नया परिवार, सब कुछ बहुत अलग लग रहा था। मैं बहुत सहमी हुई थी और जो सबसे बड़ा बदलाव था कि यह परिवार बहुत ही छोटा सा था, सिर्फ मम्मी पापा एक छोटा भाई और दो बड़ी बहन जिनकी शादी पहले ही हो चुकी थी। हालांकि आज के ज़माने में सब लोग यही सोचते हैं कि हमें छोटा परिवार ही मिले तो अच्छा मगर मेरे लिए यह एक बहुत बड़ा बदलाव था।मन ही मन, मैं अपने बड़े से परिवार को बहुत याद कर रही थी। इस सब के बीच में मेरी सासू माँ ने मुझे बहुत सहज महसूस करवाया, धीरे-धीरे हमारे बीच और बातें हुई और हम जल्द ही सहेलियाँ बन गए। मैं इस विषय पर इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि आजकल यह धारणा पहले से ही बना ली जाती है कि एक सास तो अच्छी हो ही नहीं सकती।जल्द ही मेरे पति और मैं बेंगलुरू चले गए क्योंकि हमें अपनी जॉब पर वापस लौटना था। मेरी सासू मां और ससुर जी थोड़े दिनों के लिए वहाँ आए। जब मैं ऑफिस से आती थी तो मुझे खाना बना हुआ मिलता था। हाँ आप लोग शायद यकीन ना करें लेकिन ऐसा होता था। बाकी का काम मैं कर लेती थी और रात में उनको हल्दी वाला दूध भी देती थी। इस तरह हम आपसी समझ से घर संभाल लिया करते थे। जब मैं प्रेग्नेंट हुई तब भी उन्होंने मेरा बहुत ख़याल रखा। शायद मेरी किस्मत बहुत अच्छी थी जो मुझे ऐसी सास मिली और कुछ मेरी माँ से मिले हुए संस्कार थे जिससे मुझे एडजस्ट करने में दिक्कत नहीं हुई। मगर कई बार ऐसा होता है कि हम सामने वाले इंसान की अच्छाई को देखना ही नहीं चाहते और यह घोषित कर दिया जाता है कि सास तो बेकार ही होती है। जबकि एक कोशिश तो हर इंसान को करना चाहिए, आख़िर वो दिन भी आया जब मैं खुद ममता की दहलीज़ पर खड़ी थी। मेरी गोद में एक नन्ही सी परी थी, हम सभी बहुत खुश थे मगर यह खुशी ज्यादा दिन ना टिक सकी। एक एक्सीडेंट्स ने मेरी सासू माँ को हम सब से हमेशा के लिए छीन लिया। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, बड़ी हिम्मत करके यह सब लिख रही हूँ किसी अच्छे इंसान को खोने का दुख क्या होता है यह सिर्फ उसके करीबी बता सकते हैं।अंत में सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगी कि अपनी सासू माँ को भी अपनी माँ बनने का एक मौका दें और फिर देखें की चीजें कैसे बदलती है।
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