मां के संस्कारों का सम्मान एवं मां के स्नेह की शक्ति बेमिसाल
जी हां पाठकों मां के स्नेह और प्रेम की तो किसी से भी ना ही तुलना की जा सकती है और ना ही कल्पना । मैंने इन कविताओं के माध्यम से आपके समक्ष अपने उद्गार व्यक्त करने की कोशिश की है । आशा है कि आप अवश्य ही पसंद करेंगे ।
१. माँ के संस्कारों का सम्मान (कविता)
ये नव जीवन पाया तुझसे मां
तुझ पर अर्पित पावन सुमन मां
तुझ पर क्या लिखूं कविता मां
तू स्वयं ही जीवन में परिपूर्ण मां
तेरी क्या उपमा दूं मैं इस संसार को
तुझी से पाया अनमोल प्यार है
कोशिश यही है सदैव मेरी मां
तूने दिये संस्कारों को प्रकाश रूपी
दीपक से सर्वत्र प्रकाशित कर पाऊं
तूने ही सिखाए सत्य के पथ पर
अपने बच्चों को भी राह दिखा पाऊं
तेरा भोलापन याद रहेगा मां
मेरा अंतर्मन इसका गवाह मां
माँ तेरी ही अभिलाषा से
देश के शहीदों को नमन करते हैं
तेरे ही आशीर्वाद से जीवन में सफल होते हैं
इतना साहस दे मां मुझे इस जीवन में
निडरता से अन्याय का विरोध कर पाऊं
और आभार करूं सभ्यता का
जिसके सहयोग से संस्कारों का सम्मान होगा मां
साथ ही रोशन होगा नाम
२. माँ के स्नेह की शक्ति बेमिसाल (कविता)
माँ का प्यार होता है कुछ खास
इसमें घुली होती है अपनेपन की मिठास
सब चीजें फिकी लगे नहीं उसमें
मीठेपन का अहसास
माँ का प्यार जिसे मिले
वह है सबसे खुशनसीब
कोई भी काम आसान हो जाता
मंजिल लगे करीब
माँ को कोई नहीं रहती बच्चों से उम्मीद
ना ही वो करें कभी भी कोई ज़िद
बिखेरे हरदम खुशियां आती हुई बहारों जैसी
माँ सब दुःख दर्द सहन करके भी
लुटाती सब पर हमेशा अपना प्यार
चाह नहीं किसी की उसको
सदा बच्चों की खुशी में ही
ढुंढे स्वर्ग जमीं पर
माँ के स्नेह की शक्ति बेमिसाल
चाहे बेटा हो या फिर बेटी, आखिर मां तो मां ही होती है । उसका स्थान इस संसार में कोई नहीं ले सकता है और यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । मां तो बेटा-बेटी दोनों पर ही अपना प्यार और स्नेह लुटाती है ।
चाहे बच्चे कितने भी बड़े हो गए हों पर मां की बच्चों के प्रति जिम्मेदारी कभी पूर्ण नहीं होती है, उसके लिए वे सदा छोटे ही रहते हैं ।
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