बच्चो को अपंग नही सबल बनाए

बच्चो को अपंग नही सबल बनाए

आजकल सभी को पका पकाया खाने की आदत है | सब को सब कुछ करा कराया चाहिए | अगर कोई कुछ करना भी चाहे तुम माएँ उन्हें करने नहीं देना चाहती। पार्क में बैठी एक बुजुर्ग महिला के मुख से यह सुन रचना बोली- आंटी आप ऐसा क्यों कह रही है? तो इशारे से उन आंटी ने बताया देखो वह आरती है, अपने बेटे को फूल को छूने से मना कर रही है। इस पर मैंने कहा -कि यह तो अच्छी बात है फूल तोड़ना बुरी बात है। तो आंटी बोली- बिल्कुल बुरी बात होती है फूल तोड़ना, मैं जानती हूं। पर फूल को छूना बुरी बात नहीं होती। आरती इसलिए मना कर रही है अपने बेटे को कि कोई कांटा ना चुभ जाए और उसके हाथ मैले हो जाएंगे। पर रचना ने कहा आंटी कांटा चुभेगा तो वह  रोएगा और  इन्फेक्शन का भी डर है। आंटी ने कहा- तुम ठीक कह रही हो ,परंतु यदि वह बच्चा उस फूल को स्पर्श ही नहीं करेगा। कांटों के डर से तो उसकी कोमलता का एहसास उसे कैसे होगा? आजकल के बच्चे को माता पिता हर चीज देते हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता होती है। जैसे कोई टॉय या बर्थडे पर गिफ्ट, बर्गर, पिज़्ज़ा हर वीकेंड पर आउटिंग, अच्छे से अच्छे स्कूल में एजुकेशन, सारा प्रोटेक्शन परंतु इन सब को देने के चक्कर में जो सबसे अधिक आवश्यक है ,वह देना भूल जाते हैं।जब तक वह जीवन की कठिनाइयों को महसूस नहीं करेगा। तो उनसे बचने के तरीकों को कैसे सीखेगा वह। वह फूल को छूएगा नहीं  तो चाह कैसे जागेगी उसके अंदर उसे उगाने की। चाहे कितने भी कठिनाइयां आए वह बीज को बोएगा  भी और कांटों से बचना भी स्वयं सीख जाएगा। परंतु यह अति संरक्षण की भावना है ना हमारे अंदर अपने बच्चों के प्रति यह कहीं ना कहीं उनकी सफलता में बाधक भी है।

सोचो यदि किसान अपने पुत्र को यह कहकर फसल उगाना ना सिखाए कि इस कार्य में न धन है और मेहनत भी अधिक है । तो हमारे लिए भोजन की व्यवस्था कैसे होगी? ऐसे ही बहुत से कार्य हैं, जिनमें अधिक परिश्रम होता है ,परंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम अपने बच्चों को वह कार्य करने ही ना दे ।परिश्रम चाहे खेत पर हो ,खेल के मैदान में पसीने बहाना,  परिश्रम परिश्रम होता है ।परंतु पसीना बहेगा इसीलिए परिश्रम करने ही ना दिया जाए ।तो यह अन्याय होगा अपने ही बच्चे के साथ ,उसके शरीर के साथ, उसके जीवन के उद्देश्य के साथ। क्योंकि जहां उद्देश्य है, वहां परिश्रम भी है।परिश्रम से ही मनुष्य कठोर होता है। केवल शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी ।और यही कठोरता उसे जीवन में आगे चलकर हर परिस्थिति में सुदृढ़ बनाए रखने में सहायक होती है। स्वास्थ्य तन के साथ साथ स्वस्थ मन भी जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

तो छूने दीजिए काटो से भरे फूल, गिरने दीजिए और कभी-कभी संभलने भी दिजिए, ताकि आपके बिना भी संभालना सीखे यह नन्हे बच्चे। जब कठिनाइयों में आपके बच्चे अंसमझ की स्थिति में हो। तो पहले उनसे कहिए कि आप स्वयं निकाले अपनी समस्या का समाधान। यदि नहीं निकाल पाए वह समाधान उचित रूप से। तो आप करें मार्गदर्शन उनका।

जीवन की समस्या से हो जाने दीजिए दो चार कभी,  फिर देखिए हो जाएगी नौनिहालों की जिंदगी गुलजार, कांटों के बीच भी गुलाब की तरह,  खिल खिलाएंगे ,हसाएंगे ,गिरेंगे और संभलेगे भी।।

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