बच्चो का चारित्रिक विकास परिपक्व सोच के साथ
शिक्षिका हूँ – एक प्राइवेट स्कूल की नाम है नेहा। तो बच्चों को सभी को सिखाने की जैसे जिम्मेदारी मेरी ही है। यह सोचते- सोचते पहुंची स्कूल तो देखा बच्चे शोर मचा रहे हैं। मैंने सभी को एक साथ डांटते हुए कहा – क्यों शोर मचा रहे हो। तभी छोटे से आकाश जो शांत स्वभाव का छात्र था बोला – मैंम इनकी मम्मी पापा ने यहीं सिखाया है। मैंने आकाश से कहा- क्यों मम्मी पापा ने क्या सिखाया है यह मैं नहीं जानती पर मैंने तुम्हें क्या सिखाया है तुम यह क्यों भूल जाते हो ।
तभी पीछे से चपरासी महोदय प्रिंसिपल का फरमान लाएं आपको ऑफिस में बुलाया है । मैं समझ ही नहीं पाई कि ऐसा क्या हुआ जो सुबह- सुबह प्रिंसिपल सर ने मुझे बुलाया है। कल कोई गलती तो नहीं हुई मुझसे। और कल की स्कूल की पूरी दिनचर्या जैसे आंखों के समक्ष तैर गई मेरे, कि कहीं कोई ऐसी गलती जिसके कारण आज डांट पड़ सकती है। पर मुझे ऐसा कुछ महसूस ही नहीं हुआ। हां चौथी कक्षा में इमानदारी और अनुभव को लेकर एक पाठ जरूर पढ़ाया था ।जो नैतिक शिक्षा का एक विषय था। डिस्कशन कुछ ज्यादा ही लंबा खींच गया था। समझ नहीं पाई कि क्या कोई उसी दौरान गलती हुई।
इसी ऊँहा पोह की स्थिति से गुजरती हुई पता ही नहीं चला कि मैं प्रिंसिपल साहब के ऑफिस के बाहर ही हूं। अंदर आने की अनुमति ले मैंने कमरे में प्रवेश किया, तो आकाश के माता-पिता मेरे सामने थे। मुझे लगा कल शायद कुछ ज्यादा ही ज्ञान बांट बैठी मैं, और यह उसका दुष्परिणाम है। जो अब भुगतूगीं मैं, तभी प्रिंसिपल साहब उठे और बोले नेहा कल नैतिक शिक्षा के पीरियड में क्या पढ़ाया था। मैं समझ गई कि कल पक्का कुछ गड़बड़ तो हुई है मुझसे । तो भुगतान अपेक्षित है। मैं थोड़ा घबराई।
आकाश की मम्मी मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोली- कल जो आपने हमारे बेटे को सिखाया उसने हमें सिखाया उसके लिए धन्यवाद । हम दोनों एक दूसरे से शिकायतों में इतना उलझे रहते हैं कि माता-पिता की जिम्मेदारी केवल स्कूल की व ट्यूशन की फीस देकर पूरी कर लेते हैं, और रही सही कसर सप्ताह के अंत में बर्गर पिज़्ज़ा व खिलौने दिला कर। जब कल हम दोनो आपसी झगड़ों में उलझे हुए थे। तो आकाश अचानक से बोला कि आप दोनों ही बेईमान है ईमानदारी से रहना चाहिए मम्मी पापा ।हमने उससे पूछा हम ईमानदार हैं, बेईमानी कहां कर रहे हैं ।तो आकाश ने कहा -मेरी मैम ने आज ही हमें सिखाया है कि हमें हमेशा ईमानदार रहना चाहिए, सभी के प्रति। फिर चाहे वह सच और झूठ के बीच के अंतर हो अथवा कोई रिश्ता निभाना हो। यदि मैं और मेरे दोस्त साथ हैं और हमारी दोस्ती पक्की है, तो हम ईमानदार हैं अपनी दोस्ती के प्रति। ऐसे ही मम्मी-पापा, दादा-दादी, नाना-नानी सभी को हम सच में ईमानदारी से प्रेम करें व शिकवे शिकायतों के बावजूद भी आपसी सम्मान दे। तो वह भी एक प्रकार की ईमानदारी ही है, साथ ही मैंम ने अनुभव के बारे में बताया कि- आप सब कहते हैं कि हम आपसे ज्यादा पढ़े-लिखे हैं और इसीलिए हमारे पास अनुभवी ज्यादा है। पर मैंम ने कहा अनुभव अनुभव होता है वह किसी भी आयु में किसी भी परिस्थिति में प्राप्त करा जा सकता है। अनुभव अच्छा या बुरा ,मीठा या कड़वा किसी भी आयु वर्ग के मनुष्य को हो सकता है। अनुभव किसी आयु सीमा की बपौती नहीं है ।
नेहा- नेहा तभी प्रिंसिपल साहब की आवाज मेरे कानों में गूंजी, मैं समझ ही नहीं पाई आकाश के माता- पिता जो कुछ कह रहे हैं, वह सच में सच ही है। क्या कल का पाठ मैंने इतने वैज्ञानिक तरीके से सिखाया था बच्चों को ?तो अब मेरी खिंचाई होगी अथवा शाबाशी मिलेगी।तभी प्रिंसिपल साहब ने मुझे कहा -क्या आप कुछ कहना चाहेंगी, मैंने कहा -यह नैतिक शिक्षा की कक्षा का प्रथम कर्तव्य है कि जो हम पढ़ रहे हैं ,उसे गुणे भी, परंतु हम सब यह पाठ पढ़ चुके हैं परंतु गुणते नहीं, क्योंकि यह बातें सभी के कहे अनुसार -केवल किताबों में ही अच्छी लगती है। परंतु बच्चों मैं चारित्रिक विकास व नैतिक मूल्य हम सभी जगाना चाहते हैं। हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चे बहुत अच्छे मनुष्य बने। ताकि हर समस्या का समाधान उचित समय पर उचित सूझबूझ के साथ निकाल सके ।परंतु क्या केवल चारित्रिक विकास व नैतिक मूल्य बच्चों के अंदर ही पैदा करने की आवश्यकता है। पहले हमें स्वयं के अंदर चाहे मैं एक शिक्षिका हूँ अथवा आप स्वयं ,चाहे आप बहुत अच्छा कमाते हैं, बहुत ऊंची पोस्ट पर कार्यरत हैं ,करने की आवश्यकता है केवल नैतिक शिक्षा के पीरियड मात्र से ही यह संभव बिल्कुल नहीं है ।
फिर क्यों ना एक नैतिक शिक्षा का पीरियड विद्यालय में सभी शिक्षक शिक्षिकाओं के लिए और एक पीरियड माता पिता के लिए लगाया जाए। तभी पूरे समाज का चारित्रिक विकास होगा ,क्योंकि स्कूल में कुछ घंटों का अनुभव स्कूल के बाहर के अनुभव पर हमेशा भारी रहेगा और चारित्रिक विकास के साथ साथ भावनात्मक विकास भी जरूरी है। तभी आकाश के पिता ने कहा आपका विचार माननीय है और इस पर गौर किया जा सकता है ।प्रिंसिपल साहब की स्वीकृति के साथ ही आज पहली बार विधालय में शनिवार को विद्यार्थियों का अवकाश व माता पिता के अंदर नैतिक व भावनात्मक विचार उत्पन्न करने के लिए कक्षा लगाई गई ।
और आसपास के सभी स्कूलों ने भी इस स्कूल के साहसिक कदम की सराहना की।
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