डिलीवरी – एक बच्चे का और एक माँ का नया जन्म
ये कहानी है डिलीवरी के बाद की. १२ फरवरी को मुझे एक बड़ा ही प्यारा बेटा हुआ.लोग बहुत खुश थे. हमारे पूरे फैमिली में ये पहला बच्चा था. मेरे पापा ने तो नाम भी सोच लिया था, सब कुछ एक सपने की तरह लग रहा था.
डिलीवरी केे पांच दिन बाद की बात है, सुबह नौ बजे में सोकर उठी. फिर फ्रेश होकर हाथ धोने जैसे ही बेसिन के पास पहुुंची, वैैसेेे ही वजाइना सेे खूून कि धारा निकलना शुुरू हो गयी. देखतेे ही देखते खूून से मेंरेे पाव लाल हो गए. कुुुछ ही पल में खूून मेरे पैरों से होकर ज़मीन पर फैलता गया. मुुुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. आसपास मेरे कोई नहीं था, फिर मैने अपने पति को आवाज दी, “राव यहां आना तो ” . शायद उन तक मेरी आवाज नहीं पहुंची. मैैंने और एक बार आवाज़ दी, फिर मुझे उनकी आवाज़ आयी “अभी आया”.
जैसे ही वो आऐ मुझे खूून से लतपथ देेेख बहुत घबरा गऐ. मुझ से कहा ” तुम यहीं पर रूको मैं अभी कुछ करता हूँ”. दूूसरे ही पल में मेरी मांं दौड़ी चली आईं, मेरी मांं मुझे घर के अंदर ले आयी. मुझे एक कुर्सी पर बिठाया गया. जैसे जैसे सबको पता चलेते गया वैसे वैसे मुझे देखने के लिए भीड़ हो रही थी. तभी मेरे पति, प्रवीण ने कार का इंतज़ाम किया और मुझे पास के एक हॉस्पिटल ले गए.
मैं प्रवीण से बोली कि मुुझे नागपुर के हॉस्पिटल ले चलो जहां डिलीवरी हुई थी. पर वो बहुत घबरा गए थे क्योकि खून बहुत बह चुका था. पास मे हि एक छोटा हॉस्पिटल था, मुझे वहीं लेे गए. मुझे व्हीलचेयर पर बिठाया गया, सीधे ओपीडी में ले जा रहे थे तभी वहां एक डॉक्टर आयीं और बोली ” पहले मरीज को साफ करो तभी उसका इलाज होगा” .
तभी एक दूसरी डॉक्टर बोली ” मरीज़ की जान ज्यादा जरूरी है या साफ सफाई” . दोनो डॉक्टरों कि आपस मे बहस चल रही थी. वो सब देेेखकर मैं घबरा गई, प्रवीण सब देेेखकर डॉक्टरों पर भड़क गए. वो बोले, “अगर आपसे इलाज नहीं हो रहा तो बता दीजिये मैंं नागपुर ले जाउंगा”. यह सुुनकर वहां एक सिनीयर डॉक्टर आई, उनके समझाने के बाद मुझे वहां एडमिट किया गया, तब तक मेेरा बी.पी. कम हो गया था.
डॉक्टर ने सलाईन लगाई ओर बाहर बैैठे मेरेे परिवार से बोले ” आपके पास आधा घंटा है मरीज कि हालत गंभीर है. आप चाहे तो मरीज को नागपुर ले जा सकते है”. यह सुनकर सभी के चहरे का रंग उड़ गया, अब तो नागपुर जाना भी संंभव नहीं था. डॉक्टर ने मुझे बेहोशी कि दवाई दी. उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं.
जब आंखें खुली तब मैंं आइ.सी.यू. मे थी, प्रवीण मेरे पास बैठे थे, मेरा हाथ अपने हाथों मे लिए, मेरी जान सही मायने मे मेरे पति ने बचाईं थी. शाम ह़़ोने को आइ थी. मैं सुबह से अपनेे बेेेटे से नहीं मिली थी. वो तो घर पर ही था अपनी मासी के पास. जब-जब उसे भूक लगती तब-तब वो बहुत रोने लगता.
वो पाउडर वाला दूध नहीं पी रहा था. सभी घरवाले बच्चे को दूध पिलाने की कोशिश कर रहे थे पर वो नही माना. हमारे यहा किराये में एक परिवार रहता था, उनके यहां भी एक महिना पहले डिलीवरी हुई थी, जिनकी डिलीवरी हुई उनका नाम शालू था. उन्होंने मेरे बच्चे को अपना दूध पिलाया तब वो नन्ही सी जान शांंती सेे सो पाया. आज के ज़माने में भी शालू दिदी जैसे ग्रेट लोग इस दुुनिया में हैं.
रात आठ बजे मेरे बेटे को हॉस्पिटल में मेरे पास लाया गया. तीन दिन तक हम हॉस्पिटल मे थे, आखिर चौथे दिन हॉस्पिटल से छुट्टी हो गयी और ऐसे हुआ मेरा दूसरा जन्म।
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