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क्या करें अगर आपका बच्चा हर रोज रोते हुए जागता है?
मेरी बेटी का रोना और चीखना पर्याप्त होता है, किसी का भी धैर्य टेस्ट करने के लिए और यह वह पहला काम है जो वह सबसे पहले सुबह उठते ही करती है, रचना ने मुझसे कहा।
रचना ने कहा कि कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं चाहे जितनी कोशिश कर लूं । हर दिन मेरी बेटी रोती हुई उठती है और इस वजह से मेरे परिवार के सभी सदस्य परेशान होते हैं । उसको शांत करने का कोई भी तरीका मुझे समझ नहीं आता। उसकी बात सुनकर मुझे लगा बहुत से ऐसे अभिभावक हैं जिनकी सुबह ऐसे ही होती होगी।
जब आपका बच्चा सुबह रोते हुए उठता है
शायद आप इस बात से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करें। शायद आपने भी कई बार कोशिश की होगी कि बच्चे को बहुत लंबे समय तक गोद में न उठाना पड़े और वह खुद से शांत होना सीखें । बहुत से बच्चों के लिए सुबह रोते हुए उठना सिर्फ कुछ समय के लिए होता है लेकिन कई बार हमें यह समय बहुत लंबा लगता है। शायद हो सकता है इसका कारण बच्चे की पर्याप्त नींद का पूरा न होना हो, जिससे वह सुबह अच्छा महसूस ना कर रहा हो या फिर उसे नहीं पता हो कि रात के बाद वह खुद को सुबह कैसे एडजस्ट करे। बच्चों के लिए सुबह उठना काफी तनावपूर्ण भी होता है । सुबह का समय बच्चे का रोता हुआ बीते तो हमें महसूस होता है कि बाकी का दिन ऐसे ही जाएगा । लेकिन चिंता करने की जरूरत नहीं है, आपकी तरह ही अभिभावक जिन्हें यह नहीं पता कि इस मुश्किल से बाहर कैसे आना है उनके लिए यह लेख है।
1. शिशु को समय से 15 मिनट पहले सोना सिखाएं
बच्चे अगर सुबह रोते हुए उठते हैं तो उसका सबसे मुख्य कारण यह होता है कि वह अभी भी थका हुआ महसूस करते हैं । बहुत से बच्चों को सुबह अगर एक बार नींद खुल जाए तो दोबारा सोने में तकलीफ होती है, चाहे उनके पास पर्याप्त समय क्यों न हो और आप कितनी भी बार कोशिश क्यों न करें । इसके लिए अपने बच्चों की नींद को पर्याप्त समय दें । जैसे अगर आप उसे रोज रात 10:00 बजे सुलाती है तो 9:45 पर ही सुलाने की कोशिश करें। यह बच्चे की पर्याप्त नींद में उसकी मदद करेगा, चाहे वह अपने नियत समय पर ही क्यों न उठे।
2. अपने बच्चों को एक रात पहले सिखाएं कि उन्हें अगली सुबह खुश होकर जागना है
यह सलाह आपको तब तक अजीब लगेगी जब तक आप इसके लिए कोशिश नहीं करते। हम यह भूल जाते हैं कि कई बार हमारे व्यवहार को बदलने के लिए संदेश कितने ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकते हैं, विशेष रूप से हमारे सोने से पहले दिए हुए संदेश । क्योंकि हमारा मस्तिष्क हमारे सो जाने के बावजूद लगातार काम कर रहा होता है । यह एक प्रकार की स्लीप थेरेपी है जो इस सिद्धांत पर आधारित है कि हमारा मस्तिष्क जब अर्द्ध चेतन अवस्था में होता है तो वह संदेश को ग्रहण करने और उस पर कार्य करने में ज्यादा सक्षम होता है और यह स्लीप थेरेपी 1 साल से लेकर 12 साल तक के बच्चों पर ज्यादा प्रभाव डालती है।
अपने बच्चे से इस बारे में बात करने की कोशिश करिए कि वह अगली सुबह खुश मिजाज होकर उठ सकता है। उसे डराकर नहीं (कि तुम्हें कल खुश होकर उठना पड़ेगा) बल्कि उसके मस्तिष्क में इस विचार को डालिए कि कल तुम खुश होकर उठ सकते हो।
यह संदेश अपने बच्चे को देते हुए आपका शांत रहना ज्यादा जरूरी है । यदि आपके शब्द आपके चेहरे के भाव, बॉडी लैंग्वेज तथा आवाज से मिलते नहीं हैं, यदि आप ज्यादा परेशान दिखते हैं, तो आपके इस संदेश का प्रभाव कम हो जाएगा।
3. अपने बच्चे के जगने के पहले उसे अपनी गोद में लीजिये
मैंने यह महसूस किया है कि जब बच्चे अकेले सो कर के उठते हैं तो वे ज्यादा तनावपूर्ण महसूस करते हैं और रोते हुए उठते हैं, चाहे उन्हें शांत करने की कितनी भी कोशिश की जाए। इसकी जगह मैंने नया तरीका अख्तियार किया, इससे पहले कि बच्चा सुबह उठे और परेशान हो, आप उसके उठने के थोड़ा पहले उसके पास पहुँच जाएं, उसे प्यार से जगाएं उसके बगल में थोड़ी देर बैठें और धीरे-धीरे जब वह नींद से बाहर आए तो सुरक्षा और प्यार को आपके साथ महसूस करे। ऐसा करने से बच्चा न सिर्फ अच्छा महसूस करेगा बल्कि उसके रोते हुए उठने की आदत भी कम हो जाएगी।
4. अपने बच्चे को परिस्थितियों का सामना करना सिखाएं
आपको आपके बच्चे का व्यवहार ज्यादा नागवार लग सकता है क्योंकि इसमें ज्यादा विरोधाभास महसूस होता है । एक तरफ तो आप जानते हैं कि वह थका हुआ है लेकिन दूसरी तरफ जब आप उसे सुलाने की कोशिश करते हैं तो वह सोना नहीं चाहता है।
यह विचार कि कोई रोते और चिल्लाते हुए सोकर उठता है, सोचने पर ही बहुत खराब महसूस होता है, तब तक कि जब तक आप इस स्थिति को अपने दृष्टिकोण से देख रहे हैं। लेकिन जब आप स्थिति को उसकी नजर से देखेंगे तब आपको यह व्यवहार ज्यादा अर्थपूर्ण लगने लगेगा। विशेषकर जब आप यह महसूस करते हैं कि आपका बच्चा इस लायक अभी नहीं हुआ है कि वह अपने इस तरह के भावों को खुद से नियंत्रित कर पाए। हम जानते हैं कि बच्चों के पास इस तरह के भाव भी होते हैं । जबकि हमें या आपको पता होता है कि सुबह के समय हमें उठना है और अपनी निश्चित दिनचर्या को पूरा करना है । यह हमारे लिए आसान होता है लेकिन यह बच्चे के लिए उतना ही कठिन होता है। हो सकता है कि वह अपनों से दूर होने की चिंता (sepration anxiety) या फिर रात में देखे गए किसी सपने से बाहर आने की कोशिश कर रहा हो और हम बड़ों की तरह वह अभी भी अपने भावों को नियंत्रित करना सीख रहा हो।
जैसा कि मैंने एक किताब में पढ़ा था कि आपका नियंत्रण इस पर नहीं है कि आपका बच्चा कैसे जागता है लेकिन आपका नियंत्रण आपकी प्रतिक्रिया पर है । तो यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसे कैसे सिखाएंगे। यह ध्यान रखें कि बचपन सीखने की एक लंबी प्रक्रिया है, जहाँ पर कई बार हमें यह महसूस होता है कि हम एक ही चीज को बार-बार दोहरा रहे हैं लेकिन इन्हीं दिनों में हमारा बच्चा यह सीखता है कि उसे परिस्थितियों का सामना कैसे करना है।
5. बच्चे को उसकी भावनाएं कहना सिखाएं
बच्चे जितने ज्यादा बार अपनी भावनाओं को शब्दों में अभिव्यक्त कर पाएगा उतना ही कम रोएगा । उसे सिखाएं कि वह कैसा महसूस करता है जैसे कि खुशी, दुख, नाराजगी आदि ।उसे कुछ ऐसा एक्शन प्लान दें जिससे जागने के बाद वह शांत महसूस कर सके।
उसे बताएं कि उठने के बाद वह अच्छे गाने गा सकता है, कहानियां सुन या कह सकता है। उसे कुछ ऐसा विचार दें जिससे कि वह अपने इस व्यवहार को छोड़कर उसकी जगह कुछ अच्छे व्यवहार को अपना सके।
निष्कर्ष
अपने दिन की शुरुआत अपने बच्चे के रोने के साथ शुरू करना किसी भी अभिभावक के लिए आसान नहीं होता है । लेकिन अब आपके पास कुछ ऐसे तरीके हैं जिससे आप अपने दिन की शुरुआत को आसान और खुशनुमा बना सकते हैं । बच्चे को उसके नॉर्मल बेड टाइम से थोड़ा पहले सुलाने की कोशिश करें, सुबह उठने पर उसे अपनी गोद में बिठाकर प्यार करें जिससे कि उसका मन खुश हो जाए और इसके साथ ही उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सिखाएं। उसे यह सिखाएं कि रोने के बजाय और ऐसी कौन सी गतिविधियां है जिससे वह खुश हो सकता है । अंत में अपने बच्चे को सुलाने से पहले सिखाएं कि वह अगली सुबह खुशी-खुशी उठ सकता है । सोने से ठीक पहले सकारात्मक सोच देना सुबह खुशी-खुशी उठने में बच्चों की मदद करेगा।