कृपया सर्तक रहें ! जानलेवा हो सकता है मूँगफली का एक दाना।
पिछले २ महीनों से मेरी बेटी की खाँसी का सिलसिला चला ही जा रहा था। हर थोडे़-थोडे़ दिनों में उसे खाँसी हो जाती । हम उसे डॉक्टर के पास लेकर जाते, डॉक्टर सर्दी-खासी की दवाई देते, उसे थोड़ा सा आराम मिलता लेकिन थोडे़ दिन बाद फिर वही सब शुरु हो जाता। उसकी साँसों मे हमेशा आवाज आती रहती। 26 जनवरी को उसका दूसरा जन्मदिन था। उसके बाद से उसकी तबियत ज्यादा खराब हो गई । खाँसी के साथ-साथ बुखार और उल्टियाँ भी होने लगी। हम उसे फिर से डॉक्टर के पास लेकर गए, डॉक्टर ने चेक करकर कहा कि उसे निमोनिया हो गया है और उसे एंटिबायटिक दे दी।
6 दिन का कोर्स करने पर भी उसकी खाँसी में कोई आराम नहीं मिला। बुखार और उल्टियाँ तो ठीक हो गई पर साँसो में खखड़ाहट की आवाज आती रही। हम बहुत परेशान हो गए। हम उसे एक बार फिर से अपने कैम्पस में स्थित अस्पताल में लेकर गए । वहाँ हमें एक डॉक्टर मिले, उन्होंने मेरी बेटी को चेक किया और कहा कि इसकी स्थिति ठीक नहीं हैं। इसके एक फेफड़े में तो साँस सही तरह से जा रही है पर दूसरे में कोई समस्या लग रही है। हम बहुत घबरा गए । उन्होने हमें सिटी-स्कैन करवाने के लिए कहा। सिटी-स्कैन में आया कि उसके दाहिने फेफडे़ मे कुछ फँसा हैं जिससे साँस सही तरह से नहीं जा रही है। उन्होने हमे ब्रोंकोस्कोपी करवाने की सलाह दी।ब्रोंकोस्कोपी में एनीस्थिसिया देकर बेहोश करते हैं फिर उपकरण की सहायता से साँस की नली में फँसी हुई चीजों को निकालते हैं। चूँकि मेरी बेटी सिर्फ दो साल की है और छोटे बच्चों में एनीस्थिसिया देना रिस्की होता है तो मैं बहुत डर रही थी। मेरे इस डर को दूर किया इ.एन.टी विभाग के एक डॉक्टर ने। वो मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिले, उन्होंने मुझे बहुत समझाया और इतना तक कहा कि मैम आप मुझपर भरोसा रखें, कुछ भी नहीं होगा और अगर कोई डॉक्टर इस तरह कहे तो खुद-ब-खुद उसपर भरोसा हो जाता है। हमने अपनी बेटी को अस्पताल में भर्ती करवाया।
अब सबसे बड़ी मुसीबत ये थी कि स्कोपी से १२ घंटे पहले खाने-पीने को कुछ भी नहीं देते। चूँकि स्कोपी दूसरे दिन थी तो हमें १२ बजे रात के बाद उसे कुछ भी देने से मना कर दिया गया था। वो १२ घंटों मेरे जीवन के बहुत ही कष्टकारी थे क्योंकि भूख और प्यास से बेहाल मेरी बेटी बिल्कुल नहीं सोई और पूरी रात रोती रही। दूसरे दिन जब हम उसे ओ.टी लेकर जा रहे थे तो बेहाल होकर दूध और पानी माँग रही थी। माँ-बाप के लिए अपने बच्चे को भूखा देखना सबसे ज्यादा दुखद होता है। मेरी आँखों से लगातार आँसूं बहे जा रहे थे। ओ.टी के बाहर जब हम पहुँचे तब एक डॉक्टर ने आकर मेरी बेटी को गोद में लिया, मुझे ऐसा लगा कि कुछ छूट रहा है। मैंने कभी उसको अपने आप से अलग नहीं किया आज तक। वो ऐसी फीलिंग्स थी जिसे शब्दों में बयाँ करना बहुत मुश्किल है, बस उसे एक माँ ही समझ सकती है।
वो डॉक्टर फिर से मुझसे मिले, मैंने सिर्फ उनसे इतना ही कहा कि सर “आई ट्रस्ट यू” । उन्होने मुझसे कहा कि मैम कुछ नहीं होगा। फिर भी कहते हैं ना कि माँ-बाप का दिल नहीं मानता। ऑपरेशन थियेटर के बाहर हम दोनों खडे़ रहे और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहे। करीब १ घंटे बाद वो डॉक्टर ओ.टी के बाहर आए अपने हाथ में कुछ लिए हुए। अपने हाथ में एक छोटी सी पट्टी में वो, वह चीज लेकर आए थे जो मेरी बच्ची के फेफड़े में फँसी थी। वो मूँगफली का आधा दाना था। उस मूँगफली के आधे दाने ने मेरी बेटी को 2 महीने से परेशान कर रखा था। ऑपरेशन के बाद मेरी बेटी को थोड़ी देर आई.सी.यू में रखा गया फिर प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। दो दिन उसे अस्पताल में ही अंडर ऑवजर्वेशन रखा गया फिर हम उसे घर ले आए ।
ये घटना अभी कुछ दिन पहले ही घटित हुई। अपनी कहानी के माध्यम से बस इतना ही कहना चाहूँगी कि मूँगफली, मटर, चना, सेब के छिलकों इत्यादि चीजों से अपने बच्चों को दूर रखें। हर पल छोटे बच्चों पर नजर रखें।
डॉक्टर को भगवान का रूप कहते हैं। ऐसा क्यूँ कहते हैं मेरे जीवन में घटी इस घटना ने मुझे सिखाया। मैं तहे दिल से डॉक्टर और उनकी पूरी टीम का शुक्रिया अदा करती हूँ ।
भगवान पर हमेशा विश्वास बनायें रखें क्योंकि हमारा विश्वास ही हमें उनसे जोड़ता है।
धन्यवाद !
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