मोबाइल अभिशाप भी है और वरदान भी परंतु यह हमारे इस्तेमाल के ऊपर निर्भर करता है।
मोबाइल एक वरदान है तो कही न कही अभिशाप भी है ।हमारे शरीर व खासतौर से मस्तिष्क के लिए भी।हम मोबाइल के इतने आदि हो चुके है कि चाहकर भी इससे पीछा नही छुड़ा सकते ।जबकि हम सभी यह समझते है कि यह हमारे लिए कितना नुकसानदेह है। कि कैसे एक औरत पूरी कोशिश करती है कि वह अब मोबाइल से दूर रहेगी पर वह इस विचार के आ जाने से ही कैसी मनोस्थिति से गुजरती है इस पर मेरी एक कविता
उफ्फ..!यह मोबाइल ,
जान कुछ ऐसे आफत मे आई।
आंखो पर चश्मा लगने की,
नौबत इसके कारण आई।
जब मै इसे दूसरे कमरे मे छोड़ आई,
कसम अब से यह खाई ।
कि न तुझको हाथ,
लगाऊँँगी मै भाई।
पर यह क्या तभी मोबाइल पर,
किसी की नोटिफिकेशन आई।
जिसने मन मे एक बार फिर,
उत्सुकता जगाई।
तभी मन ने टोका तूने ,
तो कसम थी खाई।
कसम थी कसम ,
न कोई गाजर मूली भाई।
तभी मन ने भीतर ही भीतर ,
यह कयास लगाए।
फेसबुक या वाटसऐप किस पर ,
नोटिफिकेशन होगी आई।
इसी उधेड़बुन में थी मै अभी,
कि कुकर ने चार सीटियाँ फालतू लगाई।
आज तो दाल कुछ ज्यादा,
ही गल गई ,
हे!मेरी माई।
तभी घनघना उठा मोबाइल,
मैं तोड़ कसम उसे उठाने,
जैसे ही कमरे में आई।
पैर मुड़ा उलझी साड़ी मे,
फोन उठाने पर ,
पति ने लताड़ लगाई।
क्यो?दिला रखा है तुमको,
यह फोन एनड्रोइड़।
कहाँ गप्पे हाँक रही थी,
तुम्हे फोन की घंटी ,
नही दे रही थी सुनाई।
क्या?कहती उनसे अपने,
पर ही झल्लाहट आई।
इस मोबाइल से पीछा
छुड़ाना इस जीवन मे ,
तो संभव नही।
हे!मेरी माई
चेतना शर्मा
मौलिक व स्वरचित
आपके विचारो का स्वागत है । मोबाइल के कारण क्या आप लोगों को कभी मुश्किलो से दो-चार होना पड़ा है ।कमेंट सेक्शन मे आकर मेरे साथ सांझा करे । मुझे फोलो भी कर सकते है।आपके लाइक,कमेट और शेयर का इतंजार रहेगा
तो कहिए बेझिझक मोबाइल के साथ हुए अपने अनुभव को।
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