अब मैंंने अपना 'मी टाईम' मैनेज करना सीख लिया है...

अब मैंंने अपना ‘मी टाईम’ मैनेज करना सीख लिया है…

सुबह उठते ही टिकटिक करती घड़ी – मैडम की रफ़्तार देखते ही पता चल गया कि जो आज दस मिनट देर से उठी हूँ न मैं, उसका खामियाजा भी मुझे ही भुगतना पड़ेगा, अब क्या भागो और भागते हुए ही सब काम निपटाते रहो।

फिर सोचा कि मैं उठते ही किचन में क्यों लग जाऊँ? वैसे आमतौर पर सवेरे उठकर चाय पीना और बालकनी से बाहर हरियाली निहारना मुझे बहुत पसंद है (हालंकि बहुत कम ही संभव हो पाता है ), क्यों न जाकर जल्दी से चाय पी लूँ तो दिन भर के काम करने की ताज़गी आ जाएगी।  फिर जल्दी से चाय बनाई और कप हाथ में लेते ही याद आया, अरे! बेटे को तो जगाया ही नहीं सोचा वहीं से आवाज़ दे दूँ तो चाय भी ख़त्म कर सकूंगी और बेटा भी उठ जायेगा ।

फिरवहीं से मैंने आवाज़ दी “सोनू, उठो बेटा, देर हो रही है, टाइम से तैयार नहीं हुए तो न नाश्ता ढंग से कर पाओगे और कहीं बस छूट गई तुम्हारी तो एक नया सियाप्पा खड़ा हो जायेगा।पर मेरा बेटा हाय नी, “मैं वारी जावां”  बेड पर लेटे-लेटे ही उनींदी आवाज़ में बोला, क्या माँ? थोड़ी देर और सोने दो न। ये लड़का तो न उठने वाला ऐसे, जब तक इसकी चादर न खींच लो, उठेगा थोड़े ही, सोचते हुए चाय का कप रखा डाइनिंग टेबल पर और उसके रूम में जाकर उसे लगभग झिंझोड़ कर जगाया …. और धकेल कर वाशरूम भेजा ।

उफ़ ये सुबह का टाइम न जरा सी प्लानिंग या टाइमिंग इधर उधर हुई कि पूरी सुबह भागते दौड़ते ही निकल जाती है और फिर भी कुछ न कुछ रह ही जाता है।मेरे अपने लिए तो पांच मिनट का टाइम निकालना भी मुश्किल होता है पर ऐसा क्यों है? खैर इतना सोचने का समय तो था नहीं काम का अम्बार लगा था सामने, तो स्वर में मिठास घोलकर और बेटे को बोलकर कि जल्दी तैयार हो के आ बेटा, तेरा नाश्ता तैयार कर रही हूँ और मैं लग गई काम पर।

ओफ्फ, याद आया कि दूधगर्म करना है, टोस्ट सेकना है, सो जल्दी से भागकर किचन में आई एक तरफ टोस्ट, टोस्टर में डाले जल्दी से माइक्रोवेव में दूध गरम करने रखा और बेटे की फरमाइश पर टिफ़िन के लिए पुलाव कुकर में बनने रखा। बेटे का टिफ़िन पैक करके उसे दिया, उसे नाश्ता दिया तो वह धीरे-धीरे टोस्ट कुतर रहा था और बार-बार तेज़ गति से भागतेघड़ी के कांटे पर नज़र डालकर चिल्लाती मैं, अरे! जल्दी खाओ नहीं तो बस चली जाएगी, यह घड़ी मैडम और मेरा बेटा दोनों सुबह से जैसे मेरी परीक्षा ले रहे थे। उफ़ समय है कि रुकता ही नहीं मेरी ऐसी हालत देख घड़ी भी जैसे और चिढ़ाती मानो चैलेंज देती है मुझे कि मैं तो भाग रही हूँ तुम भी अब मेरे साथ भागो ।

किचन के बाहर झाँका तो मेरे पतिदेव जिनकी आज बहुत जरूरी मीटिंग है और वो काफी टेंशन में थे रात से ही, पर अभी तो फ़िलहाल आराम से पैर फैलाकर अखबार पढ़ रहे थे, शायद टेंशन उनके मन में थी तो दिखी नहीं मुझको (हाहाहाहाहा), उनकी टेंशन दूर करने का इलाज़ है बढ़िया खाना और उनका मनपसंद शेक, सो कचौड़ी जिसकी तैयारी रात में ही करके रख दी थी फटाफट भरनी शुरू कर दीं, दूसरी तरफ मैंगो शेक की तैयारी की।

डाइनिंग टेबल पर लगाने के पहले इनसे विनती की “सोनू को जरा बस में बिठा दो (शुक्र है कि स्टॉप तक नहीं जाना होता उसे छोड़ने, स्कूल बस हमारे अपार्टमेंट के सामने ही आती है ) और मैं तब तक आपके लिए नाश्ता तैयार रखती हूँ|, मेरी कातर निगाहों ने काम किया ये सोनू को छोड़ने चले गए ।

ओह मेरी चाय सोचा था कि चाय की चुस्की लेकर दिन की ताज़गी भरी शुरुआत करूंगी पर वही न नसीब हुई मुझे।बिना अपनी चाय की तरफ देखे बिना ही ये सोचकर कि ये सोनू को छोड़ कर अभी वापस आ जायेंगे और नाश्ता लगा न देखकर कहीं नाराज़ न हो जाये सो फटाफट से कचौड़ियां तलनी शुरू कर दीं, जल्दी से मैंगो शेक बनाया और डाइनिंग टेबल पर लगा दिया कि ये कुछ कहने न पाएं ,पर जनाब ऐसा कभी हो सकता है कि हमारे राजराजेश्वर पतिदेव कुछ न कहे… सो मैंने तो कचौड़ी के साथ के लिए अचार, सॉस सब रख दिया था, शेक और सब कुछ यानि कि ये समझो अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी पर ये तो वहीँ से आवाज़ देकर बोले “अरे सुनो(मन में आया कह दूँ सुनती ही तो रहती हूँ कहो ), हरी धनिया की चटनी बनाई थी न वो कहाँ है उसे यहाँ लाकर तो रखो तब तो खाना शुरू करें।”

उफ़ कसम से आग लग गई चाय का प्याला उठाने ही वाली थी मैं, अरे, खुद भी तो उठ के ले सकते थे न(किचन कौन सा किलोमीटर भर दूर है ) ,पर नहीं दौड़ाते रहो, लाकर दी जनाब को खाते रहे, तारीफ तो खैर छोड़ो, कुछ भी बोले ही नहीं ,इतनी गुस्सा आयी कि पूछो मत अरे भलेमानस, मैं सवेरे से लगी हूँ कामों में, और इस उधेड़बुन में भी कि कहीं किसी भी वजह से इनका मूड न खराब हो इनको टेंशन न हो, पर इनको देखो, हुंह!  कितने बेमुरव्वत हैं ये, मेरे बारे में कुछ पूछना तो दूर एक मुझे एक नज़र देखने की भी जरूरत नहीं है इनको। इस तरह जलभुन कर मन ही मन मैं राख हुई जा रही थी ।

और अभी तो कहानी में एक अहम् किरदार की एंट्री बाकी थी भई, मेरी मेड अब उसको काम बताओ, वो भी इसी टाइम आती है(हालाँकि बुलाती तो जल्दी उसे मैं ही हूँ ) चैन नहीं लेने देगा कोई मुझे पर हाँ वही मेरी मदद भी करती है ।

तभी बाहर आयी बर्तन समेटने तो पतिदेव बोले “अरे भई, तुम्हारी ‘टी’ ,’कोल्ड टी’ बन गई है, सुबह से तुमको टाइम नहीं मिला क्या इसे पीने का, फिर बनाया ही क्यों? अच्छा, अभी तक चुप बैठे थे अब बोलेंगे भी तो ऐसी बात बोलेंगे कि बस गुस्सा कम भी हो रहा हो तो और भड़क जाये। अब उनके इस जुमले का क्या जवाब दूँ भला,सुबह सुबह अपना और उनका मूड बेकार की लड़ाई में बर्बाद नहीं करना था मुझे, सो होंठों पर बड़ी वाली मुस्कान लाते हुए उनसे बस इतना ही कहा मुझे कोल्ड टी बहुत पसंद है न इसलिए, और चाय का प्याला होंठों से लगते ही वो ठंडी, बेस्वाद, मलाई पड़ी चाय मानो मेरी ज़िन्दगी की कहानी बयां कर रही थी। माइक्रोवेव में गरम कर सकती थी पर चाय तो दुबारा गरम करके मुझे अच्छी नहीं लगती।

सो पहले पतिदेव को टाटा बाय बाय किया फिर सोचा अब अच्छी सी चाय बनाकरआराम से पियूँगी कामवाली को काम बताया और दस मिनट के लिए चुपचाप बैठ गई अपनी चाय फिर से बना कर……. दिन भर की प्लानिंग, लंच, डिनर सब अभी बाकी था और घर की जो हालत बनाकर ये लोग जाते है उसे ठीक करने में ही काफी समय जाता है मेरा, पर फ़िक्र नॉट, ये चाय की सुकून वाली प्याली पीकर तरोताज़ा हो जाऊंगी तो बस फिर सब काम कर लूंगी…. प्यार से चाय की प्याली को देखकर मैंने सोचा….. ओह अब पी ही लेती हूँ चाय नहीं तो फिर से कोल्ड टी न बन जाये (हाहाहाहाहा)।

पर सच में चाय पीते पीते सीरियसली सोचा विचारा तो लगा सुबह से जो मैं दौड़ भाग कर रही हूँ उसमे मेरे अपने खुद के लिए तो पांच मिनट भी नहीं निकाल सकी, ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ? क्या मैं खुद ही तो नहीं जिम्मेदार हूँ अपनी इस दशा के लिए? क्या खुद पर भी ध्यान नहीं देना चाहिए मुझे? मेरे खुद के लिए ही समय नहीं मेरे पास? सबके सब काम बेहद जरूरी हैं ये मुझे अच्छे से पता हैं और घर के काम मैंने कभी इग्नोर किये भी नहीं। पर मैं और मेरे काम वो कहाँ हैं इस आपाधापी में? कब मैं उनको करने के लिए टाइम दे पाती हूँ? और इस सोच में मैंने पाया कि मैंने सबसे ज्यादा खुद को ही इग्नोर किया है जबकि मैं ये अच्छे से जानती हूँ की मुझको खुद अपना ध्यान भी रखना चाहिए न केवल खुद के लिए बल्कि मेरे परिवार के लिए भी आखिर हम एक दूसरे से प्यार जो करते हैं ।

और इन सबमें तो तो मेरी ही गलती नज़र आ रही थी मुझे ,क्योंकि सिर्फ टाइम मैनेजमेंट और सभी कामों की प्लानिंग ही जरूरी नहीं है उसके साथ में हमें ये भी सुनिश्चित करना है की हम अपने लिए कैसे बीच बीच में समय निकालें खुद के लिए भी, और इसके लिए सबसे जरूरी ये है कि घर के कामों को घर के सभी सदस्यों की क्षमता और उम्र के हिसाब से बांटा जाये, उनकी भी मदद ली जाये, जैसे कि, मेरे घर में मेरे पति जल्दी उठ जाते हैं तो बेटे को जगाने और स्टॉप तक छोड़ने जाने का काम वो कर सकते हैं(उनकी छोटी सी वाक हो जाएगी, है न आम के आम गुठलियों के दाम वाली बात, हाहाहा) मैं अन्य कार्य, किचन इत्यादि देख सकती हूँ (अपनी चाय ख़त्म कर सकती हूँ, हाहाहा चाय बड़ी प्रिय है मुझे, मैंने बताया था न )। थोड़ा-थोड़ा काम सब मिल कर करें तो कितना अच्छा होगा और सबसे थोड़ी मदद लेने में क्या हर्ज है ?मुझे भी आखिर मेरा “me time” चाहिए कि नहीं, मैं भी इंसान हूँ हक़ बनता है मेरा मेरे खुद के टाइम पर।

आपका दिन भी अगर ऐसे ही शुरू होता है और पूरे दिन काम चलता ही रहता है तो सिर्फ टाइम मैनेजमेंट से ही काम नहीं चलेगा सखियों अब समय है कि घर, परिवार के लोगों से भी मदद लीजाए, डेली रूटीन के कामों को करने में उनकी हिस्सेदारी जरूर होनी चाहिए । मदद केवल बड़े ही क्यों बच्चे भी कर सकते हैं, लांड्री बैग में पड़े कपडे वाशिंग मशीन में डाल सकते हैं(छोटे बच्चे हैं तो थोड़ा ध्यान दें ,बड़े बच्चे आसानी से कर लेते हैं ये काम ), छोटे बच्चे बोतलें भर सकते हैं, अपनी प्लेट्स उठाकर किचन सिंक में रख सकते हैं और इसी तरह के छोटे, बड़े कई कामों में हम उनसे मदद ले सकते हैं, उनके लिए भी मज़ेदार होगा। ऐसा बदलाव ट्राई करके तो देखिये काफी फर्क पड़ेगा और आपको खुद के लिए समय मिलेगा जरूर, और उस “me time”  को आप कैसे भी मैनेज और इस्तेमाल कर सकती हैं,जैसे भी आप चाहें, और फिर देखिएगा ये जो चिड़चडाहट और गुस्सा, तनाव है न, खुद के लिए पाए इस समय को अपने हिसाब से जीकर अपना ख्याल रखें तो ये सब बहुत सारी खुशियों में बदल जायेगा।  ढ़ूँढ़े खुशियों को वो हमारे आस पास ही छिपी मिल जाएँगी ज्यादा दूर नहीं जाना होगा सखियों हमें इसके लिए ।

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